समय की घड़ी कभी पीछे नहीं घूमती....फिल्म सिटी ही विकल्प
Written by Pramod Bramh-Bhatt, Raipur Chhattisgarh Dated- 30th Sept 2021
छत्तीसगढ़ शासन राज्य में फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए फिल्मसिटी बनाना चाहता है और उसके द्वारा फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई प्रावधान भी किए जाने की चर्चा चल रही हैं । सरकार ने राज्य में फिल्म निर्माण पर अनुदान की घोषणा भी की है, लेकिन छालीवुड उसका विरोध कर रहा है। वैसे छत्तीसगढ़ के संस्कृति विभाग से बहुतेरे उपकृत कलाकार क्या सरकार का मुखर विरोध कर पाएंगे इसमें संशय है।
आइए देखते हैं कि छालीवुड क्यों फिल्मसिटी का विरोध कर रहा है। उसकी दो शंकाएं हैं पहला यह कि अगर फिल्मसिटी बन जाएगी तो उनको मुफ्त में दृश्य फिल्माने की अनुमति खत्म हो जाएगी। दूसरा उनके अनुसार सरकार की प्राथमिकता गाँव-गाँव में टाकीज बनाने की जरूरत होना चाहिए, ताकि छालीवुड को प्रदर्शन के लिए स्क्रीन उपलब्ध हो जाए। कारण यह है कि छत्तीसगढ़ मात्र सौ टाकीजों का बाजार है जिसके कारण उनकी फिल्म का बजट 35 लाख बताया जाता है, कभी-कभी तो इससे भी कम का वास्तविक बजट होना लोग कहते सुने जाते हैं।
अगर ध्यान दें तो छालीवुड की पहली आशंका निराधार है मुंबई में फिल्म सिटी है तो क्या दूसरी जगह फिल्मी शूटिंग नहीं होती है। ऐसा नहीं है, फिल्मसिटी में मराठी भाषा की फिल्मों को रियायत दी जाती है। अब दूसरे बिंदु पर विचार करें तो आपको पता है कि दक्षिण भारत में तीन फिल्म इंडस्ट्री है तेलगू, तमिल और मलयालम इसके अलावा बंगाल याने टालीवुड को भी शामिल किया जा सकता है। अगर क्षेत्रफल के आधार पर देखें तो सभी फिल्म इंडस्ट्री प्रत्येक लगभग छत्तीसगढ़ के बराबर ही पड़ेगी। यह अलग बात है कि वहाँ पर स्क्रीन ज्यादा हो सकते हैं।
लेकिन अगर छत्तीसढ़ में गाँव-गांव में टाकीज खोले जाएंगे तो पूर्व के अनुभव के आधार पर कोई एक घराना अधिकतम टाकीज हथिया लेगा और फिल्म प्रदर्शन में दादागिरी करेगा, ऊपर से सरकार से प्राइम लोकेशन पर जमीन चाहेगा। ( जैसे आईनाक्स, पीव्हीआर, देश में फैले राजश्री वालों के टाकीज आदि) अगर हम आज की परिस्थिति को देखें तो ओटीटी प्लेटफार्म विकसित हो चुके हैं, सबका बजट हजार करोड़ के आसपास है। वहाँ फिल्में प्रदर्शित हो रही हैं और सभी अपने घर में बिना टाकीज जाए मनपसंद फिल्म देख रहे हैं।
असली समस्या छालीवुड और हिन्दी भाषी क्षेत्रों के फिल्म उद्योग की, नकल की प्रवृत्ति है। इन इंडस्ट्री में आज तक ऐसी कोई फिल्म नहीं है जिसे बालीवुड रिमेक करने को तैयार हुआ हो। यह समस्या केवल छालीवुड की ही नहीं बल्कि भोजपुरी फिल्मों की भी है। अगर यह प्रवृत्ति खत्म हो तो इस इंडस्ट्री को भी फलने फूलने से कोई रोक नहीं सकता है।
कल ही मैंने ओटीटी प्लेटफार्म पर एक फिल्म देखी ऐनाबेल राठौर जो तेलुगू फिल्म है इसका तेलुगू वर्जन का नाम ऐनाबेल सेतुपति है। याने फिल्म को गन्ने की तरह पेरा जा रहा है क्योंकि वह ओरीजनल है, किसी की कापी नहीं है।
इन सारी स्थिति पर विचार करते हुए हम यह समझते हैं कि सरकार को फिल्मसिटी खोलना चाहिए और ओटीटी प्लेट फार्म में उपयोग किए जाने वाले कैमरे और एडीटिंग की सुविधा सस्ते में छत्तीसगढ़ के कलाकारों को उपलब्ध कराना चाहिए इसके अलावा उन्हें ओटीटी प्लेटफार्म में जोड़ने के लिए भी सुविधाएं प्रदान करना चाहिए ताकि इस फिल्म इंडस्ट्री का फायदा हो सके। रही मेरी बात तो मैं हॉलीवुड के साथ तेलुगू फिल्मों पर फिदा ( फिदा फिल्म) हूँ।
Article written by Pramod bramh-bhatt
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