रायपुर - आईवीएफ में लाईफस्टाईल महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है - डॉ. नलिनी मढ़रिया

आईवीएफ में लाईफस्टाईल महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है - डॉ. नलिनी मढ़रिया


रायपुर, 27 फरवरी, 2020 - ‘वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पैक्ट्स: द 2017 रिवीजऩ’ रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा अनुमान है कि भारतीयों में फर्टिलिटी की दर (महिला द्वारा जन्म दिए जने वाले बच्चों की संख्या के रूप में मापा जाने वाला) में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है और यह 1975-80 के बीच 4.97 से घटकर 2015-20 के बीच 2.3 प्रतिशत रह गई है। इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि यह दर 2025-2030 के बीच घटकर 2.1 रह जाएगी। आज शहर में एक राउंडटेबल कर इसके कारणों के बारे में जानने की कोशिशकी गई, ताकि इन- विट्रो फर्टिलाईज़ेशन (आईवीएफ) की सफलता की दर में सुधार किया जा सके, जो आज बहुतायत में उपयोग की जाने वाली एक प्रभावशाली असिस्टेड प्रिग्नेंसी तकनीक है।


विलंबित गर्भावस्था या फिर प्राकृतिक रूप से गर्भ धारण करने की असमर्थता आज के दंपत्तियों की एक बड़ी समस्या बन गए हैं। इसमें अनेक तत्व, जैसे जीवन शैली, माता की आयु, शरीर का वजऩ, आहार एवं आलस्यपूर्ण शारीरिक गतिविधि शामिल हैं। शोध से खुलासा हुआ है कि अस्वस्थ जीवनशैली आईवीएफ प्रक्रिया में गर्भधारण की दर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अस्वस्थ आहार, जैसे कैफीन, अल्कोहल एवं धूम्रपान का सेवन आदि गर्भधारण पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।


सेहतमंद आहार आईवीएफ परिणामों की सफलता में सकारात्मक प्रभाव डालता है। व्यायाम एवं शारीरिक गतिविधि भी जननक्षमता के इलाज पर प्रभाव डालते हैं। इन सभी को मेडिकल विशेषज्ञों के परामर्श की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है। डॉ. नलिनी मढ़रिया, एमबीबीएस, एमडी , डीबीएन, आशीर्वाद  हॉस्पिटल इक्सी टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर, डंगनिया, रायपुर ने कहा, ‘‘लोगों को अपनी जीवनशैली को गंभीरता से लेना होगा क्योंकि यह गर्भधारण को प्रभावित करती है। गर्भधारण हासिल करने का उद्देश्य पूरा करने के लिए डॉक्टर एवं दोनों पार्टनर्स की इसके प्रति निरंतर रुचि व संलग्नता आवश्यक है। पारंपरिक रूप से जो मरीज अपने स्वास्थ्य के लिए फर्टिलिटी चिकित्सक से परामर्श व सहयोग लेते हैं, उन्हें ज्यादा तीव्र व बेहतर रिप्रोडक्टिव परिणाम मिलते हैं।’’


जो दंपत्ति आईवीएफ साईकल के लिए तैयारी व शुरुआत करते हैं, वो अनेक भावनाओं के दौर से गुजरते हैं। चिंता, व्यग्रता, दुख, अनिश्चितता सामान्य हैं क्योंकि दंपत्तियों को गर्भ के लिए काफी निवेश व शारीरिक मेहनत करने पड़ते है। डॉ. नलिनी ने कहा, ‘‘महिलाओं को बंध्यता की काफी चिंता होती है। यह बात वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुकी है कि तनाव का बंध्यता की दर से सीधा संबंध है। यह एक मौन संघर्ष होता है, लेकिन पहले प्रयास में ही आईवीएफ इलाज की सफलता की दर में काफी सुधार किया जा सकता है। इसके लिए दंपत्तियों को महत्वपूर्ण पक्षों जैसे सही वजन, सेहतमंद आहार व जीवनशैली, शरीर में पर्याप्त विटामिन डी तथा तनावरहित जीवन के लिए प्रतिबद्ध रहना होगा।’’


प्राकृतिक रूप से गर्भधारण सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन ऊपर बताई गई सभी बातों को देखते हुए आज के समय असिस्टेड प्रिग्नेंसी आम हो गई हैं। आईवीएफ से जुड़े रोग-संबंधी कारक, जैसे महिला की आयु, डायग्नोसिस एवं ओवेरियन रिज़र्व आदि पर काफी बल दिया जाता है, लेकिन मरीज पर केंद्रित जीवनशैली के बारे में बहुत कम जानकारी है, जिसका परिणामों पर गहरा असर पड़ता है। इसलिए एक अनुभवी व उचित मेडिकल पार्टनर जरूरी है, जो सफल असिस्टेड प्रिग्नेंसी हासिल करने में दंपत्तियों का निरंतर मार्गदर्शन व सहयोग कर सके।